सुश्री स्मिनू जिन्दल, मैनेजिंग डायरेक्टर, जिन्दल सॉ लिमिटेड, एक दूरदर्शी उद्यमी हैं जिन्होंने ये मिथक तोड़ दिया कि महिलाएं स्टील, तेल और गैस क्षेत्र में बड़ी कंपनियों का नेतृत्व नहीं कर सकती। जिन्दल सॉ लिमिटेड, जिसका मौजूदा टर्नओवर Rs. 8300 करोड़ है, को उचाईयों तक पहुंचाने में सुश्री जिन्दल का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
सुश्री जिन्दल, जो खुद व्हीलचेयर यूजर है, वर्ष 2000 में ‘स्वयम’ नाम की एक संस्था की स्थापना किया, जिसका उद्देश्य विश्व को सुगम्य बनाना है ताकि बुज़ुर्गों, बच्चों, बीमारों, और दिव्यांगजनों को जीवन जीने और अपने रोज़ मर्रा के कार्यो के करने में किसी भी तरह की परेशानी न हो और वो स्वाभिमान और सुरक्षा के साथ अपना जीवन जी सकें।
स्वयम की स्थापना से पहले देश में अधिकतर लोग केवल विकलांगता के बारे में जानते थे और इनके अधिकारों की मांग करते थे। स्वयम ने लोगो में सुगम्यता को लेकर जागरूकता फैलाना शुरू किआ और पालिसी और धरातल दोनों लेवल पर कड़ी मेहनत की। एक ऐतिहासिक मौका हमें क़ुतुब मीनार को सुगम्य बनाने को मिला जिसके एक्सेसिबल बनने के बाद 20 मेंबर्स वाली संसदीय समिति, जिसके अध्यक्ष श्री सीताराम येचुरी थे, ने क़ुतुब परिसर का सर्वेक्षण किया और देखा कि कैसे सुगम्यता हर तरह के टूरिस्ट्स (बुज़ुर्ग, बच्चे, महिलाएं, दिव्यांगजन) को लाभ पहुंचा रही है। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने सारी विश्व धरोहर स्थलों को सुगम्य बनाने का निर्णय लिया जिसमे ताज महल भी शामिल है।
इसके बाद पर्यटन मंत्रालय, दिल्ली सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर सुगम्यता से होने वाले फायदे के बारे में जागरूकता बढ़ने लगी और सरकार को ये मालूम हो गया कि सुगम्यता देश के लिए ज़रूरी है। जब सरकार ने ‘सुगम्य भारत अभियान’ की शुरुआत किआ तब बहुत सारी संस्थाओं को रोज़गार से जुड़ने का मौका मिला और पहली बार संस्थाओं ने सुगम्यता के लिए काम करना शुरू किया ।
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुगम्य वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए स्वयम वर्ष 2012 से अलग अलग देशों में अवार्ड्स भी देता रहा है। अगला पड़ाव ताइवान है।
ऐसा देखा जाता है कि घर में बुज़ुर्ग होने के बावजूद भी लोग अपने घर को सुगम्य नहीं बनाते। क्या ये जागरूकता की कमी की वजह से है या लोगों को ये लगता है की ये काम महंगा होगा?
हाँ, जागरूकता की कमी है। हमें लगता है की हमारे बुज़ुर्गों ने अपनी ज़िन्दगी जी ली और वो अब ‘एडजस्ट’ कर लेगें। हम उनकी दिक्कतों को नहीं समझ पाते और उन्हें ‘एडजस्ट’ करने के लिए बोल देते हैं।
लोग 60 वर्ष की आयु में सेवानिवृत हो जाते हैं परन्तु बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से रिटायरमेंट के बाद भी उनके पास जीने के लिए लम्बी आयु बची होती है। हमें सोचना चाहिए की 60 से 80 के बीच इस लम्बी उम्र को भला एक बुज़ुर्ग कैसे एडजस्ट कर लेगा। सुगम्य व सुलभ बुनियादी वातावरण और सुविधाओं की कमी के कारण बुज़ुर्ग सोने के पिंजरों में क़ैद हो जाते हैं जिसे वो कभी घर कहा करते थे!
और फिर बुज़ुर्ग ही क्यूँ? सुगम्यता की ज़रूरत आप को है, सब को है। महिलाओं, बीमार, बच्चों, घायल – इन सबको सुगम्य इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत पड़ती है। सुगम्यता आपके घर को ‘सुरक्षित’ बनाती है। इसलिए सुगम्य बिल्डिंग, सुगम्य यातायात और सुगम्य सर्विसेज का होना बेहद ज़रूरी है।
ये काम लगता महंगा है किन्तु ऐसा नहीं है। आज के इंटरनेट के ज़माने में सुगम्य घर बनाने के लिए हर इन्फॉर्मेशन आसानी से हासिल की जा सकती है। अगर आप नया घर बना रहें हैं तो इसे सुगम्य बनाने में कोई अलग खर्च नहीं होगा। पहले से बने हुए टॉयलेट को सुगम्य बनाने (रेट्रोफिटिंग) में भी ज़्यादा खर्च नहीं होता, पर ये तो आपको घर बनाते समय सोचना चाहिए था कि चिकनी टाइल्स या संगमरमर न लगाए जबकि बाजार में स्किड-फ्री टाइल्स और ग्रैब बार्स आसानी से मिल जाते हैं। ये तो आपको मालूम होगा की अगर दरवाज़ा चौड़ा होगा तो जहाँ लकड़ी ज़्यादा लगेगी वहां ईट, सीमेंट कम भी तो हो जाएगी।
ये काम महंगा नहीं, डिफरेंट ज़रूर है। या ये कहिये कि ये दूसरी तरह से सोचने की चीज़ है।
पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को सुगम्य बनाने में मुख्य चुनौतियां क्या हैं?
तीन चुनौतियां हैं। पहली चुनौती जागरूकता की कमी हैं। इसकी वजह से हम ये नहीं जान पाते कि ‘सुगम्यता’ हम सब का विषय है और हमें इससे कभी न कभी तो जूझना ही पड़ेगा। चूँकि हम जागरूक नहीं इसलिए हम अपनी ज़िम्मेदारियों को भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हम रैम्प का रखरखाव नहीं करते, वहां कूड़ा दाल देते है, ट्रैफिक से बचने केलिए कर्ब-कट से अपनी बाइक निकाल ले जाते हैं, लिफ्ट में बुज़ुर्गों को पहले नहीं चढ़ने देते।
दूसरी बात, मान लो अगर एक बस या बस स्टॉप ख़राब हो जाये तो क्या हम उसे इस्तेमाल करना छोड़ देते है? नहीं, बल्कि हम उसे मेन्टेन करते रहते है। इसी तरह रैंप व सुगम्यता के अन्य साधनों का रखरखाव भी ज़रूरी है।
लोगों के नज़रियें को बदलना दूसरी बड़ी चुनौती है। जैसे हम पानी का इंतज़ाम करते हैं (न कि ये इंतज़ार करें की पहले प्यास लगे फिर कुआँ खोदें), वैसे ही घर को अभी सुगम्य बनाना ज़्यादा ज़रूरी है या फिर पहले चोट लग जाये, विकलांगता और बुढ़ापा आ जाये तब सोचें कि आओ अब घर को सुगम्य बनाते है? तबतक शायद बहुत देर हो चुकी होगी। उम्र के उस पड़ाव में शायद आपके पास आर्थिक निर्णय लेने की क्षमता भी न हो।
ऐसा मानना कि ये तो केवल २% (दिव्यांगजन) लोगों की प्रॉब्लम है फिर भला हम क्यूँ इस विषय पर बात करें, न सिर्फ ग़लत है बल्कि अपने आप को धोखा देने जैसा है। क्या आप बूढ़े नहीं होंगे? क्या आप के घर पर बुज़र्ग नहीं है? क्या आपके घर पर कभी कोई महिला प्रेगनंट नहीं होगी? क्या आपके घर में बच्चे नहीं रहते? क्या किसी को कभी भी चोट नहीं लगेगी? क्या कभी कोई बीमार नहीं पड़ेगा? ये सब हर घर में होता है, इसलिए नज़रिया बदलिए, नज़ारा अपने आप बदल जायेगा।
जागरूकता डिमांड्स को बढ़ाएगी और जब डिमांड्स बढ़ेगी तो सुगम्य घर बनाने वालों और इसमें इस्तेमाल होने वाली चीज़ो की उपलब्धता अपने आप ही बढ़ जाएगी।
तीसरी बड़ी चुनौती आवाज़ न उठाना है। उदाहरण के तौर पर रेलवेज में सुगम्यता को लेकर तो काम हो रहा है पर विमानों में में एक भी सुगम्य टॉयलेट नहीं होता जबकि इसमें प्रथम श्रेणी का कक्ष व विशिष्ट स्नानगृह का प्रावधान होता है। अब जरा कल्पना कीजिये कि आप लम्बी दूरी की हवाई यात्रा पर जा रहे हैं और आपको केवल इसलिए अपने आपको रोकना पड़े कि विमान में एक भी सुगम्य शौचालय नहीं है! क्या ये मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं? लेकिन ये हक़ तो तभी मिलेगा जब सारे लोग एक साथ आवाज़ उठाएगें।
दिव्यांग लोगों को हमारे देश में चैरिटी की नज़र से देखा जाता है, जबकि उन्हें सामान अधिकार मिलना चाहिए। इस पर आपके क्या विचार है?
आपने बिलकुल सही कहा। दिव्यांगजनों को सामान अधिकार मिलना ही चाहिए। जन सामान्य ये समझती है कि दिव्यांगजन केवल चैरिटी के पात्र है। स्कूल और कॉलेज सुगम्य नहीं, बच्चो के माता-पिता चाहते नहीं कि उनके बच्चे के साथ कोई दिव्यांगजन पढ़े, कंपनी इन्हे जॉब देना नहीं चाहती क्यूंकि फिर उन्हें अपने ऑफिसेस को सुगम्य बनाना पड़ेगा, इसलिए अधिकतर लोग दिखावे, पुण्य प्राप्त करने या एक अच्छी अनुभूति हेतु थोड़ी देर के लिए दिव्यांगजनों के प्रति सहानुभूति तो दिखा देंगें पर कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे एक दिव्यांगजन स्वाभिमान के साथ अपनी रोज़ी कमा सके। दिव्यांगजन को ‘बेचारा’ दिखाने में कुछ संस्थाओं का भी काफी योगदान है। यहाँ तक कि माता -पिता भी अपने दिव्यांग बच्चे को ‘स्पैशल ट्रीट’ करते है, जो गलत है। उनको पूरी तरह दूसरों पर निर्भर बना देते हैं और इस तरह वो बच्चे असली दुनिया और इसकी प्रोब्लेम्स को नहीं समझ पाते और न ही झेल सकते हैं। इसलिए माता-पिता को चाहिए कि दिव्यांग बच्चों को भी आत्मनिर्भर बनाये और उन्हें गिरने और उठने का मौका दे।
दिव्यांगजन को आगे बढ़ने के लिए चैरिटी नहीं, अपॉर्चुनिटी चाहिए। इसीलिए हमें सुगम्य शिक्षा और शिक्षा का सामान अधिकार की मांग करना चाहिए। अगर दिव्यांग बच्चो को चैरिटी के बजाये सुगम्य शिक्षा मिलेगी तो वो अपनी राह तलाशने में खुद सक्षम होंगें।
सम्मिलित समाज तभी बनेगा जब पब्लिक इंफ़्रास्ट्रक्टर, ट्रांसपोर्ट एवं टेक्नोलॉजीज सुगम्य होंगी। जब लोग पालिसी बदलने की बात करेंगे तब अधिकार मिलेगा। ‘स्वयम’ इसी मिशन को लेकर आगे बढ़ रहा है।
सरकार का कितना सहयोग रहा है आपके मिशन में?
सरकार का सहयोग स्वयम के लिए बहुत ज़रूरी है क्यूँकि इतने विशाल देश के आधारभूत ढाँचे को सुगम्य बनाना किसी एक व्यक्ति या संस्था के बस की बात नही। वर्तमान सरकार ‘सुगम्य भारत अभियान’ को लांच करके हमें जागरूकता फ़ैलाने का मौका दिया। अगर हम सब अपनी शारीरिक परिस्थितियों के बावजूद एक साथ विकास के लिए चल पड़े तो वो दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर से ‘सोने की चिड़िया’ कहलाएगा।
जब आपकी सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ की बात करती है तो वो तभी होगा जब सही मायनों में सम्मिलित सर्व शिक्षा अभियान, स्वच्छ भारत, सुगम्य भारत के अन्तर्गत साफ़ और सुगम्य टॉयलेट और इंफ्रास्ट्रक्चर और यातायात होगा।
‘स्वयम’ का आगे का क्या प्लान है?
स्वयम सरकार के साथ मिलकर देश को सुगम्य बनाने के लिए पूरी तरह समर्पित और कार्यरत है। हम नेशनल बिल्डिंग कोड (NBC) के अलावा ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) द्वारा स्मार्ट सिटीज मिशन के लिए बनायीं गयी समिति के भी मेंबर हैं। हम केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) साथ भी हमारे कई प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं। पहले भी हम सरकारी डिपार्टमेंट्स जैसे लोक निर्माण विभाग (PWD) और नई दिल्ली नगर निगम (NDMC) के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट्स कर चुके हैं।
हवाई यात्रा सुगम्य बनाने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय एवं सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को हमने CAR (हवाई नियम) को बदलने के लिए कई रेकमेंडेशन्स दिए हैं, और उम्मीद करते हैं की उन्हें जल्द नए CAR में शामिल किया जायेगा।
अभी हमने दिल्ली मेट्रो के अमान्तरण पर उनके 10 मेट्रो स्टेशन को बुज़ुर्गों, महिलाओं, बच्चो, बीमारों एवं दिव्यांगों के लिए सुगम्य बनाने के लिए एक्सेस ऑडिट किया है, जिसका रेकमेंडेशन्स तैयार किया जा रहा है।
इसके अलावा वाराणसी के घाटों को सुगम्य बनाए के लिए हमें आमंत्रित किआ गया था। इन घाटों का एक्सेस ऑडिट संपन्न हो चूका है और रेकमेंडेशन्स भी सबमिट करने के कगार पर हैं।
आहार विहार के पाठकों को सुगम्यता के बारे में आप क्या सलाह देना चाहेंगीं?
जब लोग विकलांग हो जाते हैं या बुढ़ापे की वजह से चल फिर नहीं सकते, तो उनके पास दो विकल्प होते हैं – आप क्या कर सकते हैं, और आप क्या नहीं कर सकते हैं। आप जो नहीं कर सकते हैं उसे पछतावा करने के बजाय, महत्वपूर्ण यह है कि आप अपनी मौजूदा क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करें और देखें कि आप उन क्षमताओं के साथ क्या कर सकते हैं। इसके लिए सुगम्यता के बारे में बोध होना और उसके प्रति कार्यरत होना और आवाज़ उठाना ज़रूरी है।
हम सभी को वास्तविकता को स्वीकार करना होगा और इसके लिए पूर्ण रूप से तैयार भी रहना होगा। हमें सोचना होगा कि भारतवर्ष में 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु वाले लोगों की है। जब वो बुज़ुर्ग हो जायेंगें तो क्या उन्हें सुगम्य इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं चाहिए?
अगर एक समावेशी समाज हमें बनाना है तो ‘सुगम्यता’ हमारे लिए “रोटी, कपडा और मकान” की तरह बेहद ज़रूरी होना चाहिए। आपकी मैगज़ीन का नाम भी ‘आहार विहार’ है। उम्मीद है इसके ज़रिये काफी लोगों तक मेरी बात पहुंचेगी और सुगम्य विहार के कैंपेन को बल मिलेगा।
इस नेक काम में हर इंसान की मदद चाहिए तभी ये एक ‘क्रांति’ बन पायेगा और मुझे पूरा विश्वास है कि जिस तरह ‘हरित क्रांति’ एवं ‘श्वेत क्रांति’ आई, उसी तरह अब हम सब मिलकर ‘सुगम्य क्रांति’ लेकर आएगें।
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